कॉफी ब्लेंडिंग की भारतीय परंपरा: पारंपरिक और समकालीन विधियाँ

कॉफी ब्लेंडिंग की भारतीय परंपरा: पारंपरिक और समकालीन विधियाँ

विषय सूची

भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत में कॉफी की शुरुआत एक दिलचस्प कहानी से जुड़ी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि 17वीं सदी में बाबा बुदन नामक एक सूफी संत यमन से सात कॉफी बीज लाए थे और उन्हें कर्नाटक के चिकमगलूर क्षेत्र में लगाया था। यही से भारत में कॉफी की खेती की नींव पड़ी। समय के साथ, दक्षिण भारत के हरे-भरे पहाड़ों में कॉफी की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी।

पारंपरिक भारतीय ब्लेंडिंग की जड़ें

भारतीय संस्कृति में स्वाद और सुगंध का विशेष स्थान है, इसलिए यहां की कॉफी ब्लेंडिंग भी खास तरीके से विकसित हुई। पारंपरिक रूप से, भारतीय किसान अलग-अलग किस्म की कॉफी बीन्स—जैसे अरेबिका और रोबस्टा—को मिलाकर अनूठे फ्लेवर तैयार करते हैं। इन ब्लेंड्स को मसालों जैसे इलायची, दालचीनी या जायफल के साथ भी मिश्रित किया जाता है ताकि स्थानीय स्वाद को उभारा जा सके।

कॉफी ब्लेंडिंग के पारंपरिक तरीके

ब्लेंडिंग विधि प्रमुख क्षेत्र विशेषता
अरेबिका व रोबस्टा मिश्रण कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु मधुर और हल्का-कड़वा स्वाद
मसाला ब्लेंड (इलायची, अदरक) दक्षिण भारत खुशबूदार और देसी फ्लेवर
डेको ब्लेंड (चिकोरी के साथ) तमिलनाडु गाढ़ा और मलाईदार स्वाद, फ़िल्टर कॉफी के लिए उपयुक्त
स्थानीय शब्दावली और सांस्कृतिक प्रभाव

दक्षिण भारत में फिल्टर कॉफी या काप्पी बहुत लोकप्रिय है। इसे आमतौर पर स्टील के टंबलर और डाबरा में परोसा जाता है। यहाँ की पारंपरिक कॉफी ब्लेंडिंग सिर्फ स्वाद का मेल नहीं है, बल्कि यह भारतीय आतिथ्य और सांस्कृतिक विविधता का भी प्रतीक है। जब आप किसी स्थानीय कैफ़े या घर में जाते हैं, तो आपको हर जगह थोड़ा अलग फ्लेवर मिलता है—यही भारत की कॉफी संस्कृति की खासियत है।

2. प्रमुख भारतीय कॉफी उत्पादक क्षेत्र और उनकी विशिष्टताएँ

भारत के मुख्य कॉफी उत्पादक राज्य

भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग की परंपरा का गहरा संबंध उन क्षेत्रों से है, जहाँ अलग-अलग प्रकार की कॉफी उगाई जाती है। भारत में मुख्य रूप से तीन राज्य कॉफी उत्पादन में अग्रणी हैं: कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु। हर राज्य की अपनी अनूठी जलवायु, मिट्टी और कृषि परंपराएँ हैं, जो वहाँ की कॉफी को खास बनाती हैं। आइए इन क्षेत्रों की प्रमुख विशेषताओं को समझते हैं:

क्षेत्रवार भारतीय कॉफी की विशेषताएँ

क्षेत्र कॉफी का प्रकार स्वाद प्रोफ़ाइल खास बातें
कर्नाटक अरेबिका और रोबस्टा दोनों मध्यम बॉडी, हल्की मिठास, फलिया और चॉकलेट नोट्स भारत का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र; चिकमंगलूर, कूर्ग जैसे प्रसिद्ध इलाके शामिल हैं
केरल मुख्यतः रोबस्टा तीखा, मजबूत स्वाद, हल्की कड़वाहट और मसालेदार सुगंध इडुक्की और वायनाड जैसी पहाड़ियों में उगाई जाती है; मानसून मालाबार का घर
तमिलनाडु अरेबिका प्रमुखता से संतुलित अम्लता, फूलों की खुशबू, नाजुक स्वाद नीलगिरि हिल्स की ऊंचाईयों में उगने वाली विशेष किस्में; पारंपरिक छाया कृषि पद्धति

इन क्षेत्रों की भूमिका भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग में

भारतीय ब्लेंडर्स पारंपरिक रूप से इन क्षेत्रों की विविधताओं को मिलाकर ऐसे मिश्रण तैयार करते हैं, जिनमें हर क्षेत्र की खूबी झलकती है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक की फलिया मिठास केरल के तीखेपन के साथ संतुलन बनाती है, वहीं तमिलनाडु का सुगंधित अरेबिका किसी भी ब्लेंड को खास बना सकता है। यही वजह है कि भारतीय कॉफी ब्लेंड्स दुनिया भर में अपने जटिल और बहुआयामी स्वाद के लिए पहचाने जाते हैं।

इन विविधताओं को समझना न सिर्फ ब्लेंडिंग प्रक्रिया को आसान बनाता है बल्कि स्थानीय भारतीय स्वादों को भी बढ़ावा देता है। यदि आप कभी भारत यात्रा करें, तो इन राज्यों की स्थानीय कॉफी का अनुभव जरूर लें—यह आपको एक असली देसी स्वाद यात्रा पर ले जाएगा!

पारंपरिक भारतीय ब्लेंडिंग विधियाँ

3. पारंपरिक भारतीय ब्लेंडिंग विधियाँ

भारतीय घरों और दुकानों में कॉफी मिलाने की परंपरागत तकनीकें

भारत में कॉफी ब्लेंडिंग सिर्फ़ एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि संस्कृति का हिस्सा है। हर क्षेत्र और परिवार के पास अपनी खास विधि होती है। दक्षिण भारत के घरों में आज भी पारंपरिक तरीकों से कॉफी बीन्स को मिक्स किया जाता है। यहाँ हम उन सामान्य तकनीकों को देखेंगे जो आमतौर पर भारतीय घरों और स्थानीय दुकानों में अपनाई जाती हैं।

दक्षिण भारतीय फ़िल्टर कॉफी के लिए ब्लेंडिंग

दक्षिण भारत की फ़िल्टर कॉफी विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ अरेबिका और रोबस्टा बीन्स का मिश्रण बहुत प्रचलित है। आमतौर पर 70% अरेबिका और 30% रोबस्टा का ब्लेंड सबसे ज़्यादा पसंद किया जाता है, जिसमें कभी-कभी चीकरी (चिकोरी) भी मिलाई जाती है। चीकरी से स्वाद में खास कड़वाहट और गाढ़ापन आता है।

घटक अनुपात (%) भूमिका
अरेबिका बीन्स 60-80% मुलायम स्वाद, हल्की मिठास
रोबस्टा बीन्स 20-40% गाढ़ापन, झाग बढ़ाना
चीकरी (वैकल्पिक) 10-20% कड़वाहट, अनोखा स्वाद

स्थानीय दुकानों में ब्लेंडिंग की सरल विधि

छोटे शहरों या गांवों में स्थित कॉफी बार या किराना दुकान में अक्सर ग्राहक अपनी पसंद का कॉफी मिश्रण खुद चुनते हैं। दुकानदार अलग-अलग बीन्स को ताजगी से पीसकर तुरंत मिलाते हैं। कई बार लोग अपने घर के लिए खास अनुपात बता देते हैं जैसे “थोड़ा ज्यादा रोबस्टा डालना” या “चीकरी कम रखना”। यह व्यक्तिगत स्वाद का सम्मान करने वाली परंपरा है।

ब्लेंडिंग के पारंपरिक उपकरण
  • हाथ से चलने वाली ग्राइंडर: पुराने जमाने में लकड़ी या धातु की ग्राइंडर से बीन्स पीसी जाती थीं। इससे बीन्स की खुशबू और ताजगी बनी रहती थी।
  • फ़िल्टर डेकोचन पॉट: दक्षिण भारत में स्टील या पीतल का फ़िल्टर इस्तेमाल होता है, जिसमें ग्राउंड कॉफी रखकर धीरे-धीरे पानी टपकाया जाता है। इससे गाढ़ा डेकोचन मिलता है जिसे दूध और चीनी के साथ मिलाकर सर्व किया जाता है।
  • ब्रास मिक्सिंग बाउल: पारंपरिक दुकानों में ब्रास के कटोरे में हाथ से मिलाया जाता है ताकि सभी घटक अच्छी तरह मिक्स हो जाएं।

लोकप्रिय पारंपरिक ब्लेंड्स के उदाहरण

ब्लेंड नाम प्रमुख क्षेत्र विशेषता
Mysore Nuggets Blend Karnataka गहरा रंग, मसालेदार सुगंध, हल्की मिठास
Kumbakonam Degree Coffee Blend Tamil Nadu उच्च गुणवत्ता वाली अरेबिका, अधिक चीकरी
Café Madras Blend Tamil Nadu & Kerala गाढ़ा स्वाद, झागदार फिनिश

इन पारंपरिक विधियों ने भारतीय कॉफी पीने की संस्कृति को खास पहचान दी है। आज भी भारतीय घरों और दुकानों में ये तकनीकें बड़े गर्व से अपनाई जाती हैं।

4. आधुनिक कॉफी ब्लेंडिंग ट्रेंड्स

भारत में हाल के वर्षों में कॉफी ब्लेंडिंग का तरीका बहुत बदल गया है, खासकर युवाओं और शहरी बाजारों में। पहले जहाँ सिर्फ पारंपरिक फिल्टर कॉफी या डेकोक्शन पद्धति चलन में थी, वहीं अब लोग अलग-अलग फ्लेवर और फ्यूजन एक्सपेरिमेंट करने लगे हैं। नीचे हम देखें कि आजकल कौन-कौन से आधुनिक ट्रेंड्स भारत में लोकप्रिय हो रहे हैं।

भारतीय युवाओं के बीच लोकप्रिय समकालीन ब्लेंडिंग ट्रेंड्स

ट्रेंड विवरण
कोल्ड ब्रू फ्यूजन दूध, मसाले और चॉकलेट सिरप के साथ कोल्ड ब्रू का मिश्रण। यह गर्मियों में बहुत पसंद किया जाता है।
स्पाइस-इन्फ्यूज्ड ब्लेंड्स इलायची, दालचीनी, जायफल जैसे भारतीय मसालों के साथ एक्सपेरिमेंट। युवाओं को इनका अनोखा स्वाद खूब भाता है।
सिंगल ऑरिजिन क्राफ्ट ब्लेंड्स कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु जैसे क्षेत्रों की स्पेशल बीन्स को मिलाकर बनाए गए प्रीमियम ब्लेंड्स। ये शहरी कैफे संस्कृति में काफी पॉपुलर हैं।
फ्लेवरड लट्टे और मोका हेज़लनट, वेनिला, कैरामेल आदि फ्लेवर्स वाली लट्टे और मोका ड्रिंक्स का चलन तेजी से बढ़ रहा है।
वेजन/प्लांट-बेस्ड ब्लेंड्स सोया, बादाम या ओट मिल्क के साथ तैयार की गई स्पेशल ब्लेंड्स को हेल्थ-कॉन्शियस युवा अपना रहे हैं।

शहरों में कॉफी ब्लेंडिंग कैसे बदल रही है?

अब लोग केवल घर पर ही नहीं, बल्कि कैफे और रेस्टोरेंट में भी नई-नई ब्लेंडिंग विधियाँ आज़मा रहे हैं। बारिस्टा अक्सर कस्टमाइज्ड ऑर्डर लेते हैं जहाँ ग्राहक अपनी पसंद के अनुसार मसाले, दूध या स्वीटनर चुन सकते हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी क्रिएटिव रेसिपीज़ वायरल हो रही हैं जिनसे युवा प्रभावित होकर नए प्रयोग करते हैं। शहरी बाजारों में specialty coffee shops अब लोकल बीन और इंटरनेशनल रोस्ट दोनों को मिक्स कर यूनिक इंडियन टेस्ट क्रिएट कर रहे हैं। इस तरह भारतीय कॉफी कल्चर लगातार इन्नोवेट हो रहा है।

ट्रेडिशन बनाम मॉडर्निटी: एक नजर तुलना पर

पारंपरिक कॉफी ब्लेंडिंग आधुनिक कॉफी ब्लेंडिंग
डेकोक्शन/फिल्टर मेथड
स्थानीय बीन्स पर केंद्रित
सीमित फ्लेवर विकल्प
घर की रसोई तक सीमित
परिवारिक माहौल में सेवन
क्राफ्ट व स्पेशलिटी रोस्ट
ग्लोबल व लोकल बीन्स का मेल
अनेक फ्लेवर व अडिशन्स
कैफे व रेस्तरां संस्कृति
युवा एवं प्रोफेशनल वर्ग पसंद करता है
समाप्ति नोट:

इस तरह भारत में कॉफी ब्लेंडिंग की परंपरा ने समय के साथ नये रंग और स्वाद अपनाए हैं, जो आने वाले समय में और भी विविधता लेकर आएंगे।

5. भारतीय स्वाद के अनुसार ब्लेंडिंग

भारतीय उपभोक्ताओं की स्वाद प्राथमिकताएँ

भारत में कॉफी पीने की परंपरा सदियों पुरानी है, और हर क्षेत्र का अपना एक अलग स्वाद प्रोफ़ाइल होता है। दक्षिण भारत में लोग आमतौर पर फिल्टर कॉफी को पसंद करते हैं, जिसमें रोबस्टा और अरेबिका बीन्स का मेल रहता है। वहीं उत्तर भारत में हल्की और सुगंधित कॉफी लोकप्रिय है। देश के अलग-अलग हिस्सों में मसालेदार, चॉकलेटी या नट्टी फ्लेवर वाली कॉफी का चलन भी बढ़ रहा है।

भारतीय स्वाद के लिए उपयुक्त बीन्स का चयन

स्वाद प्रोफ़ाइल अनुशंसित बीन्स विशेषता
मजबूत और गाढ़ा (Strong & Intense) रोबस्टा कड़वाहट अधिक, कैफीन ज्यादा
सुगंधित और हल्का (Aromatic & Light) अरेबिका फूलों जैसी खुशबू, कम कड़वाहट
मसालेदार (Spicy) चिकमगलूर मिश्रण हल्का मसालेदार स्वाद, स्थानीय उत्पादन

ब्लेंड डिजाइनिंग के टिप्स

  • स्थानीय स्वाद को ध्यान में रखते हुए, अपने ब्लेंड में मसाला जैसे इलायची या जायफल मिला सकते हैं।
  • अरेबिका और रोबस्टा बीन्स का संतुलन बनाएं — आमतौर पर 70% अरेबिका और 30% रोबस्टा अच्छा रहता है।
  • यदि आपको दूध के साथ कॉफी पसंद है, तो गाढ़े रोबस्टा बीन्स का प्रयोग करें, जिससे कॉफी का स्वाद दूध में भी उभर कर आएगा।
  • हल्की सुगंध और फल जैसा फ्लेवर चाहें तो सिंगल ऑरिजिन अरेबिका चुनें।

कॉफी ब्लेंडिंग प्रक्रिया (Coffee Blending Process)

  1. पहले अपनी पसंद के अनुसार बीन्स चुनें – जैसे कि मसालेदार, फलदार या चॉकलेटी फ्लेवर।
  2. उन्हें ताजगी से भूनें (freshly roasted)।
  3. बीन्स को आवश्यक अनुपात में मिलाएं। उदाहरण: 60% अरेबिका + 40% रोबस्टा।
  4. मिक्स किए गए बीन्स को अच्छी तरह ग्राइंड करें।
  5. अपनी पसंदीदा ब्रूइंग विधि से तैयार करें – फिल्टर, फ्रेंच प्रेस या एस्प्रेसो मशीन।
प्रमुख भारतीय ब्लेंड्स की सूची:
ब्लेंड नाम मुख्य फ्लेवर नोट्स
मॉन्जून मालाबार ब्लेंड मसालेदार, मिट्टी जैसी खुशबू
दक्षिण भारतीय फ़िल्टर ब्लेंड गाढ़ा, क्रीमी, हल्की कड़वाहट
चाई इन्फ्यूज्ड ब्लेंड इलायची, दालचीनी की झलकियों के साथ मीठापन

6. स्थानीय शब्दावली और भारतीय कॉफी के लिए सामान्य शब्द

भारतीय कॉफी संस्कृति में प्रचलित शब्दावली का महत्व

भारत में कॉफी पीना केवल एक आदत नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में कॉफी से जुड़े कई खास शब्द और बोलचाल की भाषा इस्तेमाल होती है, जो भारतीय कॉफी परंपरा को और भी दिलचस्प बनाती है। इन शब्दों को जानना भारतीय कॉफी अनुभव को और गहरा बना सकता है।

प्रमुख भारतीय कॉफी शब्द और उनके अर्थ

शब्द क्षेत्र/उपयोग अर्थ/महत्व
फिल्टर कॉफी (Filter Coffee) दक्षिण भारत दक्षिण भारतीय शैली की ब्रूइंग, जिसमें डेकोक्शन और दूध का मेल होता है। यह पारंपरिक स्टील के टंबलर में सर्व की जाती है।
डेकोक्शन (Decoction) सर्वत्र, विशेषकर दक्षिण भारत कॉफी पाउडर से निकाला गया गाढ़ा अर्क, जो फिल्टर कॉफी बनाने के लिए जरूरी है।
काॅपी हाउस (Coffee House) शहरों में आमतौर पर ऐसी जगहें जहाँ लोग सामाजिक या व्यावसायिक कारणों से मिलते हैं और कॉफी पीते हैं। भारतीय साहित्य व संस्कृति में इसका खास स्थान है।
बेलन (Bellan/Bella) कर्नाटक, तमिलनाडु गुड़ या जैगरी, जो अक्सर पारंपरिक कॉफी मीठा करने के लिए प्रयोग होता है।
चिकोरी (Chicory) सर्वत्र, खासकर मद्रास शैली की कॉफी में कॉफी के साथ मिलाया जाने वाला पौधा, जिससे स्वाद और गाढ़ापन बढ़ता है। भारत में चिकोरी मिक्स्ड ब्लेंड काफी लोकप्रिय हैं।
एस्टेट (Estate) कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु कॉफी उत्पादन का क्षेत्र या फार्म; अक्सर ‘एस्टेट ब्रांड’ उच्च गुणवत्ता वाली सिंगल ऑरिजिन भारतीय कॉफी के लिए बोला जाता है।
कप्पू (Kappu/Kappi) तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक कॉफी का स्थानीय नाम; आम बोलचाल में इस्तेमाल होने वाला पारंपरिक शब्द।

स्थानीय शब्दों का भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग में योगदान

इन शब्दों का प्रयोग न केवल संवाद को आसान बनाता है बल्कि ये भारत की विविधता और क्षेत्रीय विशेषताओं को भी दर्शाते हैं। जब पारंपरिक और आधुनिक विधियों से ब्लेंडिंग होती है तो इन स्थानीय शब्दों की जानकारी से समझ आता है कि किसी विशेष क्षेत्र या परिवार की अपनी अनूठी पहचान कैसे बनी रहती है। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत की फिल्टर कॉफी या डेकोक्शन तैयार करने की रीति और स्वाद पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। वहीं उत्तर भारत के शहरी इलाकों में काॅपी हाउस मिलना आम बात है।

अभ्यास में उपयोग कैसे करें?

  • स्थानिक नामों का सम्मान करें: जब भी आप भारतीय कॉफी ट्राय करें, तो उनके स्थानीय नामों से ऑर्डर दें—जैसे ‘एक फिल्टर कप्पू’।
  • ब्लेंडिंग सीखें: यदि आप घर पर ही ब्लेंड तैयार कर रहे हैं, तो विभिन्न क्षेत्रों की शैली और उनकी शब्दावली से प्रेरणा लें।
निष्कर्ष नहीं: बस आनंद लें!

भारतीय कॉफी परंपरा को समझने के लिए उसकी भाषा जानना जरूरी है। जितनी बार आप इन शब्दों को सुनेंगे या बोलेंगे, उतना ही ज्यादा जुड़ाव इस समृद्ध विरासत से महसूस करेंगे। अपने अगली कप भारतीय ब्लेंडेड कॉफी में इन शब्दों को आज़माएं—यह अनुभव आपको नई ऊँचाइयों तक ले जाएगा!

7. निष्कर्ष और भविष्य की संभावनाएँ

भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग का सफर सदियों पुराना है, जिसमें हर क्षेत्र की अपनी खासियत और परंपरा रही है। आज के समय में पारंपरिक विधियाँ और समकालीन तकनीकें मिलकर एक अनूठा मिश्रण तैयार कर रही हैं। आइए, देखें कि आने वाले समय में भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग किस दिशा में बढ़ सकती है और इसके प्रचार-प्रसार के लिए क्या-क्या संभावनाएँ हैं।

भारतीय कॉफी ब्लेंडिंग का बदलता स्वरूप

भारत में विभिन्न राज्यों जैसे कि कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की कॉफी को अलग-अलग तरीके से ब्लेंड किया जाता है। अब युवा पीढ़ी नई विधियाँ अपना रही है, जिससे स्वाद और क्वालिटी दोनों में बदलाव आ रहा है।

पारंपरिक बनाम आधुनिक ब्लेंडिंग: तुलना

विशेषता पारंपरिक विधि आधुनिक विधि
स्वाद प्रोफ़ाइल गाढ़ा, मसालेदार, स्थानीय फ्लेवर मल्टी-नोटेड, इंटरनेशनल टेस्ट
प्रोसेसिंग हाथ से छंटाई व रोस्टिंग मशीन आधारित प्रोसेसिंग
सुलभता स्थानीय बाज़ार तक सीमित ऑनलाइन व ग्लोबल मार्केट्स में उपलब्ध
नवाचार (Innovation) परंपरागत नुस्खे ही प्रमुख नई तकनीकें व फ्यूजन ब्लेंड्स

भविष्य की दिशा: नवाचार एवं प्रचार-प्रसार की जरूरत

आज भारत में Specialty Coffee Culture तेज़ी से बढ़ रही है। लोग नए-नए ब्लेंड्स और अंतरराष्ट्रीय स्वादों को अपनाने लगे हैं। साथ ही, लोकल ब्रांड्स भी नए एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि:

  • किसानों को आधुनिक तकनीकों की ट्रेनिंग दी जाए
  • स्थानीय व वैश्विक स्तर पर भारतीय ब्लेंड्स का प्रचार किया जाए
  • कॉफी टूरिज्म को बढ़ावा मिले ताकि लोग खेतों तक पहुँचें और परंपरा को समझें
  • नई पीढ़ी को इस व्यवसाय से जोड़ने के लिए स्टार्टअप्स और इनोवेशन प्रोग्राम हों

प्रचार-प्रसार के कुछ उपाय

उपाय संभावित लाभ
सोशल मीडिया मार्केटिंग युवा उपभोक्ताओं तक सीधी पहुँच, ब्रांड अवेयरनेस बढ़ेगी
कॉफी फेस्टिवल्स एवं प्रतियोगिताएँ स्थानीय उत्पादकों को प्लेटफॉर्म मिलेगा, नेटवर्किंग होगी
शैक्षिक कार्यशालाएँ (Workshops) ब्लेंडिंग की विविधता व गुणवत्ता समझाने में मदद मिलेगी
E-commerce प्लेटफॉर्म्स का उपयोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिक्री संभव होगी, किसान/ब्रांड लाभान्वित होंगे
अंततः, भारतीय कॉफी इंडस्ट्री के पास अपार संभावनाएँ हैं—चाहे वह पारंपरिक स्वाद हो या आधुनिक इनोवेशन। सही दिशा में प्रयास करने से आने वाले वर्षों में भारतीय कॉफी ब्लेंड्स पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बना सकते हैं।